"कबीरदासः" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पङ्क्तिः १९:
संतत संपत सुख के कारन, जासे भूल परी ॥
कहत कबीर राम नहीं जा मुख, ता मुख धूल भरी ॥
[[File:Kabir gyan mandir.jpg|thumb|कबीर ज्ञान मन्दिरः]]
==पश्य==
*[[हिन्दी साहित्यं]]
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