"मकरसङ्क्रमणम्" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः ३८:
 
:'''”गवामङ्गेषु तिष्ठन्ति भुवनानि चतुर्दश ।'''
:'''[[दन्ताः|दन्तेषु]] मरुतो देवा [[जिह्वा|जिह्वायां]] तु [[सरस्वती|सरस्वती]] ॥'''
:'''खुरमध्येषु [[गन्धर्वाः|गन्धर्वा:]] खुराग्रेषु च [[सर्पः|पन्नगा:]] ॥'''
:'''सर्वसन्धिषु साध्या चन्द्रादित्यौ तु [[नेत्रम्|लोचने]] ।'''
:'''ककुदि सर्वनक्षत्रं लाङूले धर्म आश्रित: ॥'''
:'''अपाने सर्वतीर्थानि प्रस्रावे जावीनदी ।'''
पङ्क्तिः ४६:
:'''ऋषयो रोमकूपेषु गोमये पद्मधारिणी ।'''
:'''सन्ति रोमसु विद्या श्रृङ्गयोरयनद्वयम् ॥'''
:'''धैर्यं धृतिाधृति क्षान्ति पुष्टिर्वृद्धिस्तथैव च ।'''
:'''स्मृतिर्मेधा[[स्मृतिः|स्मृति]]र्मेधा तथा लज्जा वपु: कीर्तिस्तथैव च ॥'''
:'''विद्या शान्तिर्मतिवा सन्तति: परमा तथा ।'''
:'''गच्छन्तीमनुगच्छन्ति एता गां वै न संशय: ॥'''
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