"मोक्षसंन्यासयोगः" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पङ्क्तिः २५:
:[[१८.२१ पृथक्त्वेन तु यज्ज्ञानं]]
:[[१८.२२ यत्तु कृत्स्नवदेकस्मिन्कार्ये ]]
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:[[१८.५० सिद्धिं प्राप्तो यथा ब्रह्म]]
:[[१८.५१ बुद्ध्या विशुद्ध्या युक्तो]]
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