"कूडियाट्टम्" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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मिऴाव् इति किञ्चित् विशिष्टं वाद्योपकरणम् अस्यकृते उपयुज्यते। महत् घटं वत्सस्य चर्मणा दृढं बद्ध्वा तस्य निर्माणं कुर्वन्ति।
 
प्राचीन संस्कृत नाटकों का पुरातन केरलीय नाट्य रूप कूडियाट्टम कहलाता है । दो हज़ार वर्ष पुराने कूडियाट्टम को युनेस्को ने 'वैश्विक पुरातन कला' के रूप में स्वीकार किया है । यह मंदिर-कला है जिसे चाक्यार और नंपियार समुदाय के लोग प्रस्तुत करते हैं । साधारणतः कूत्तंपलम नामक मंदिर से जुडे नाट्यगृहों में इस कला का मंचन होता है । कूडियाट्टम प्रस्तुत करने के लिए दीर्घकालीन प्रशिक्षण की आवश्यकता है ।
[[वर्गः:कलाः]]
 
कूडियाट्टम शब्द का अर्थ है - 'संघ नाट्य' अथवा अभिनय अथवा संघटित नाटक या अभिनय । कूडियाट्टम में अभिनय को प्राधान्य दिया जाता है । भारत के नाट्यशास्त्र में अभिनय की चार रीति बताई गयी है - आंगिक, वाचिक, सात्विक और आहार्य । ये चारों रीतियाँ कूडियाट्टम में सम्मिलित रूप में जुडी हैं । कूडियाट्टम में हस्तमुद्राओं का प्रयोग करते हुए विशद अभिनय किया जाता है । इसमें इलकियाट्टम, पकर्न्नाट्टम, इरुन्नाट्टम आदि विशेष अभिनय रीतियाँ भी अपनाई जाती हैं ।
 
कूडियाट्टम में संस्कृत नाटकों की प्रस्तुति होती है, लेकिन पूरा नाटक प्रस्तुत नहीं किया जाता । प्रायः एक अंक का ही अभिनय किया जाता है । अंकों को प्रमुखता दिय्र जाने के कारण प्रायः कूडियाट्टम अंकों के नाम से जाना जाता है । इसी कारण से विच्छिन्नाभिषेकांक, माया सीतांक, शूर्पणखा अंक आदि नाम प्रचलित हो गये । कूडियाट्टम के लिए प्रयुक्त संस्कृत नाटकों के नाम इस प्रकार हैं - भास का 'प्रतिमानाटकम्', 'अभिषेकम्', 'स्वप्नवासवदत्ता', 'प्रतिज्ञायोगंधरायणम्', 'ऊरुभंगम', 'मध्यमव्यायोगम्', 'दूतवाक्यम' आदि । श्रीहर्ष का 'नागानन्द', शक्तिभद्र का 'आश्चर्यचूडामणि', कुलशेखरवर्मन के 'सुभद्राधनंजयम', 'तपती संवरणम्', नीलकंठ का 'कल्याण सौगंधिकम्', महेन्द्रविक्रमन का 'मत्तविलासम', बोधायनन का 'भगवद्दज्जुकीयम' । नाटक का एक पूरा अंक कूडियाट्टम में प्रस्तुत करने के लिए लगभग आठ दिन का समय लगता है । पुराने ज़माने में 41 दिन तक की मंचीय प्रस्तुति हुआ करती थी । किन्तु आज यह प्रथा लुप्त होगई है । कूत्तंपलम (नाट्यगृह) में भद्रदीप के सम्मुख कलाकार नाट्य प्रस्तुति करते हैं । अभिनय करने के संदर्भ में बैठने की आवश्यकता भी पड़ सकती है । इसीलिए दो-एक पीठ भी रखे जाते हैं । जब कलाकार मंच पर प्रवेश करता है तब यवनिका पकडी जाती है । कूडियाट्टम का प्रधान वाद्य मिष़ाव नामक बाजा है । इडक्का, शंख, कुरुम्कुष़ल, कुष़ितालम् आदि दूसरे वाद्यंत्र हैं ।
 
विशेष रूप में निर्मित कूत्तंपलम् कूडियाट्टम की परंपरागत रंगवेदी है । कूत्तंपलम मंदिर के प्रांगण ही निर्मित होता था ।
 
कूत्तंपलम से युक्त मंदिरों के नाम इस तरह हैं -
 
तिरुमान्धाम कुन्नु
 
तिरुवार्प
 
तिरुवालत्तूर (कोटुम्बा)
 
गुरुवायूर
 
आर्पुक्कारा
 
किडन्गूर
 
पेरुवनम्
 
तिरुवेगप्पुरा
 
मूष़िक्कुलम
 
तिरुनक्करा
 
हरिप्पाड
 
चेंगन्नूर
 
इरिंगालक्कुटा
 
तृश्शूर वडक्कुंन्नाथ मंदिर
 
माणि माधव चाक्यार् , 'नाट्यकल्पद्रुमम्' , पी. के. जी. नाम्प्यार, संपादक : डॉ. प्रेम लता शर्मा , संगीत नाटक अक्कादेमी , नयी दिल्ली (१९९१)
 
डॉ. पी. के. वेणु , ' संस्कृत रंगमंच और कूटियाट्टम् ', केरल की सांस्कृतिक विरासत, संपादक जी. गोपीनाथन, वाणी प्रकाशन नयी दिल्ली (1998).
 
{{कूटियाट्टं कलाविदः}}
 
[[de:Kutiyattam]]
"https://sa.wikipedia.org/wiki/कूडियाट्टम्" इत्यस्माद् प्रतिप्राप्तम्