"रावणः" इत्यस्य संस्करणे भेदः

पङ्क्तिः १७:
 
==रावणस्य दुराचारः==
कदाचित् रावणः हिमालयस्य प्रदेशे भ्रमन् अमिततेजस्विनः ब्रह्मर्षिणः कुशध्वजस्य पुत्रीं वेदवतीम् तपः कुवतीम् अपश्यत् । तां दृष्ट्वा मुग्धः भूत्वा तस्याः समीपं गत्वा तस्याः परिचयं प्राप्त तस्याः अविवाहितजीवनस्य कारणम् अपृच्छत् । तदा वेदवती अवदत् । मम पिता भगवता विष्णुना सह मम विवाहं कर्तुम् ऐच्छत् । माम् इच्छता दैत्यराजेन शम्भुना निद्रितः मे पिता मारितः । पितुः मरणम् असहमाना माता चिताम् आरूढवती । तदारभ्य अहं पितुरिच्छां सम्पूरयितुम् भगवतः महाविष्णोः तपस्यां कुर्वती अस्मि इति । तमेव अहं मम पतिं भजे । किन्तु दुराशी रावणः आदौ सरसवचनैः तां
 
वेदवती ने अपने परिचय देने के पश्‍चात् बताया कि मेरे पिता विष्णु से मेरे विवाह करना चाहते थे। इससे क्रुद्ध होकर मेरी कामना करने वाले दैत्यराज शम्भु ने सोते में उनका वध कर दिया। उनके मरने पर मेरी माता भी दुःखी होकर चिता में प्रविष्ट हो गई। तब से मैं अपने पिता के इच्छा पूरी करने के लिये भगवान विष्णु की तपस्या कर रही हूँ। उन्हीं को मैंने अपना पति मान लिया है।
 
पहले रावण ने वेदवती को बातों में फुसलाना चाहा, फिर उसने जबरदस्ती करने के लिये उसके केश पकड़ लिये। वेदवती ने एक ही झटके में पकड़े हुये केश काट डाले। फिर यह कहती हुई अग्नि में प्रविष्ट हो गई कि दुष्ट! तूने मेरा अपमान किया है। इस समय तो मैं यह शरीर त्याग रही हूँ, परन्तु तेरा विनाश करने के लिये फिर जन्म लूँगी। अगले जन्म में मैं अयोनिजा कन्या के रूप में जन्म लेकर किसी धर्मात्मा की पुत्री बनूँगी। अगले जन्म में वह कन्या कमल के रूप में उत्पन्न हुई। उस सुन्दर कान्ति वाली कमल कन्या को एक दिन रावण अपने महलों में ले गया। उसे देखकर ज्योतिषियों ने कहा कि राजन्! यदि यह कमल कन्या आपके घर में रही तो आपके और आपके कुल के विनाश का कारण बनेगी। यह सुनकर रावण ने उसे समुद्र में फेंक दिया। वहाँ से वह भूमि को प्राप्त होकर राजा [[जनक]] के यज्ञमण्डप के मध्यवर्ती भूभाग में जा पहुँची। वहाँ राजा द्वारा हल से जोती जाने वाली भूमि से वह कन्या फिर प्राप्त हुई। वही वेदवती सीता के रूप में राम की पत्‍नी बनी।
"https://sa.wikipedia.org/wiki/रावणः" इत्यस्माद् प्रतिप्राप्तम्