"रावणः" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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==रावणस्य दशशिरः==
[[रामायणम्|रामायणे ]] रावणस्य दशशिरविषये चर्चा अस्ति । सः कृष्णपक्षस्य आमावास्यायाम् युद्धार्थं गतवान् । प्रतिदिनं तस्य शिरः एकैकशः क्रमशः शिरच्छेदः अभवत् । अन्ततः शुक्लपक्षदशम्याम् अस्य वधः अभवत् । रामचरितमानसे एवं वर्णनमस्ति यत् रामः बाणेन कर्तिते मुण्डे पुनः नूतनं मुण्डम् अङ्कुरति स्म । वास्तवे अस्य दशशिरांसि कृत्रिमानि आसन् । राक्षसीयमायया एषः सिरां सि सृजति स्म । अपिच तस्य दशशिरांशि आसन् नाम एकस्मिन् शिरसि एव दशानां बुद्धिः, कार्ययोजनायाः क्षमता, कौशलं , निर्णयसामर्थ्यं च आसन् इति भावः ।
 
रावण के दस सिर होने की चर्चा रामायण में आती है। वह [[कृष्णपक्ष]] की [[अमावस्या]] को युद्ध के लिये चला था तथा एक-एक दिन क्रमशः एक-एक सिर कटते हैं। इस तरह दसवें दिन अर्थात् [[शुक्लपक्ष]] की [[दशमी]] को रावण का वध होता है। रामचरितमानस में यह भी वर्णन आता है कि जिस सिर को राम अपने बाण से काट देते हैं पुनः उसके स्थान पर दूसरा सिर उभर आता था। विचार करने की बात है कि क्या एक अंग के कट जाने पर वहाँ पुनः नया अंग उत्पन्न हो सकता है? वस्तुतः रावण के ये सिर कृत्रिम थे - आसुरी [[माया]] से बने हुये। [[मारीच]] का चाँदी के बिन्दुओं से युक्त स्वर्ण मृग बन जाना, रावण का सीता के समक्ष राम का कटा हुआ सिर रखना आदि से सिद्ध होता है कि राक्षस मायावी थे। वे अनेक प्रकार के [[इन्द्रजाल]] (जादू) जानते थे। तो रावण के दस सिर और बीस हाथों को भी कृत्रिम माना जा सकता है।
 
==बाह्यानुबन्धः==
"https://sa.wikipedia.org/wiki/रावणः" इत्यस्माद् प्रतिप्राप्तम्