"चन्द्रशेखर वेङ्कटरामन्" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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|caption= सर्. सि.वि.रामन्
|name= चन्द्रशेखर वेङ्कटरामन्
|parents = वेङ्कटाचलम्म (माता)<br />श्रीनिवासशास्त्री (पिता)
|alma_mater = प्रेसिडेन्सी महाविद्यालयः चेन्नै ।
|occupation = विज्ञानी
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'''चन्द्रशेखर वेङ्कट रामन्''' (तमिळ् சந்திரசேகர வெங்கடராமன்) (जीवितकालः - क्रि.श. १८८८तः १९७०पर्यन्तम्)कश्चित् भौतिकशास्त्रज्ञः आसीत्। एषः क्रि.श. १९३०तमे वर्षे नोबलपुरस्कारेण अलङ्कृतः । तस्‍य जन्‍म दक्षिण भारतस्‍य तिरुचिरापल्‍ली नामके स्‍थाने अभवत्‌। अध्ययनस्य पश्चात् एषः राजकीयवित्तविभागे कार्यम् अकरोत्‌। [[आशुतोष मुखोपाध्‍यायः]] तं कोलकाताम्‌ अनयत्‌। प्रकाशस्य प्रकीर्णप्रकीर्णविषये उत्कृष्टकार्यनिमित्तं क्रि.श. १९३०तमे वर्षे श्रेष्ठतमः नोबेल् पुरस्कारः प्रदत्तः । अस्य परिशोधनं तु अस्य नाम्नि एव रामन् प्रभावः इत्येव प्रसिद्धम् अस्ति । तस्य 'रामन् प्रक्रियायाः शोधनदिनाङ्क: (फ़ेब्रवरिमासस्य २८ तमदिनम्) अद्य भारते 'राष्ट्रीयविज्ञानदिनम्' इति आचरन्ति ।
 
तस्य 'रामन् प्रक्रियायाः शोधनदिनाङ्क: (२८ फ़ेब्रवरि) अद्य भारते 'राष्ट्रीयविज्ञानदिनम्' इति आचरन्ति ।
 
प्रकाश के प्रकीर्णन पर उत्कृष्ट कार्य के लिये वर्ष १९३० में उन्हें [[भौतिकी]] का प्रतिष्ठित [[नोबेल पुरस्कार]] दिया गया। उनका आविष्कार उनके ही नाम पर [[रामन प्रभाव]] के नाम से जाना जाता है।
 
चन्द्रशेखर वेङ्कट रामन् की प्रारम्भिक शिक्षा वाल्टीयर में हुई। १२ वर्ष की अवस्था में प्रवेशिका परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने भौतिकी में स्नातक और एमए की डिग्री [[मद्रास]] (अब [[चेन्नई]]) के प्रेसीडेंसी कालेज से पूरी की। इस कालेज में उन्होंने [[१९०२]] में दाखिला लिया और [[१९०४]] में पूरे [[विश्वविद्यालय]] में प्रथम स्थान प्राप्त किया। उन्होंने [[१९०७]] में [[मद्रास विश्वविद्यालय]] से [[गणित]] में प्रथम श्रेणी में एमए की डिग्री विशेष योग्यता के साथ हासिल की।<ref>{{cite web |
url= http://www.vigyanprasar.gov.in/scientists/cvraman/Ramanh.htm | title= चन्‍द्रशेखर वेंकटरमण आधुनिक भारतीय विज्ञान का एक आख्‍यान| accessmonthday= [[५ मई]]| accessyear=[[२००९]]|format=|publisher=विज्ञान प्रसार|language=}}</ref> तत्पश्चात इन्होंने सहायक वित्तीय मैनेजर के रुप मे भारतीय वित्तीय निगम [[कोलकाता]] में नौकरी शुरु की। लेकिन इस काम में उनकी रुचि नहीं थी अतः [[१९१७]] में उन्होंने सरकारी सेवा से त्यागपत्र दे दिया और इंडियन अशोसिएशन फार कल्टीवेशन आफ़ साईंस में भौतिकी के अपने प्रयोग शुरु किए। शोध कार्य के प्रति इनकी रूचि को देखकर कलकत्ता विश्वविद्यालय के उप कुलपति सर आशुतोष मुखर्जी ने इनसे भौतिक विज्ञान विभाग के प्रधान अध्यापक के पद पर कार्य करने का अनुरोध किया। भौतिक विज्ञान में खोजों के फलस्वरूप कलकत्ता विश्वविद्यालय ने इनको डीएससी की डिग्री से विभूषित किया। [[१९२४]] में ये फेलो ऑफ रायल सोसाइटी के सदस्य निर्वाचित हुए। [[१९३०]] में इन्हें रमन प्रभाव पर [[नोबेल पुरस्कार]] मिला।<ref>{{cite web |url= http://nobelprize.org/nobel_prizes/physics/laureates/1930/index.html|title=The Nobel Prize in Physics 1930|accessmonthday=[[30 अप्रैल]]|accessyear=[[२००९]]|format=एचटीएमएल|publisher=नोबेल फाउन्डेशन|language=}}</ref>[[१९४८]] में सेवानिवृति के बाद उन्होंने रामन् शोध संस्थान की [[बैंगलोर]] में स्थापना की और इसी संस्थान में शोधरत रहे। [[१९५४]] ई. में भारत सरकार द्वारा [[भारत रत्न]] की उपाधि से विभूषित रामन को [[१९५७]] में लेनिन शान्ति पुरस्कार भी प्रदान किया था।
 
[[२८ फरवरी]] [[१९२८]] को चन्द्रशेखर वेङ्कट रामन् ने रामन प्रभाव की खोज की थी जिसकी याद में भारत में इस दिन को प्रत्येक वर्ष विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है
[[चित्रम्:Sir CV Raman.JPG|thumb|220px|
 
 
 
== बाह्य ग्रन्थिया: ==
==बाह्नानुबन्धाः==
* [http://almaz.com/nobel/physics/1930a.html नोबल-पुरस्कार संदर्भ:]
 
"https://sa.wikipedia.org/wiki/चन्द्रशेखर_वेङ्कटरामन्" इत्यस्माद् प्रतिप्राप्तम्