"अष्टावक्रः" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पङ्क्तिः १:
उद्दालकऋषेः पुत्रस्य नाम श्वेतकेतुः । उद्दालकस्य शिष्यः कहोडः । उद्दालकः स्वशिष्याय कहोडाय समग्रं वेदज्ञानं प्रायच्छत् । ततः स्वस्य रूपवतीं गुणवतीं च कन्यां सुजातां तस्मै अददात् । केषाञ्चन दिनानाम् अनन्तरं सा गर्भवती जाता । कदाचित् कहोडः वेदपाठं यदा कुर्वन् आसीत् तदा गर्भस्थः बालकः अवदत् - ''पितः ! भवान् दुष्टं वेदपाठं कुर्वन् अस्ति'' इति । इदं श्रुत्वा क्रुद्धः कहोडः अवदत् - ''गर्भे तिष्ठन् एव भवान् मम अवमाननं कुर्वन् अस्ति । अतः अष्टसु स्थानेषु भवदीयं शरीरं वक्रताम् आप्नोतु'' इति ।
हठात् एक दिन कहोड़ राजा जनक के दरबार में जा पहुँचे। वहाँ बंदी से शास्त्रार्थ में उनकी हार हो गई। हार हो जाने के फलस्वरूप उन्हें जल में डुबा दिया गया। इस घटना के बाद अष्टावक्र का जन्म हुआ। पिता के न होने के कारण वह अपने नाना उद्दालक को अपना पिता और अपने मामा श्वेतकेतु को अपना भाई समझता था। एक दिन जब वह उद्दालक की गोद में बैठा था तो श्वेतकेतु ने उसे अपने पिता की गोद से खींचते हुये कहा कि हट जा तू यहाँ से, यह तेरे पिता का गोद नहीं है। अष्टावक्र को यह बात अच्छी नहीं लगी और उन्होंने तत्काल अपनी माता के पास आकर अपने पिता के विषय में पूछताछ की। माता ने अष्टावक्र को सारी बातें सच-सच बता दीं।
{{फलकम्: ऋषिमुनयः}}
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