"छत्रपतिशिवाजीटर्मिनस्" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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''' छत्रपतिशिवाजीटर्मिनस्''' [[भारतम्|भारतस्य]] वाणिज्यराजधान्यां विद्यमानम् अति विशिष्टं रेल्यननिस्थानकम् यत्र भारतस्य मध्यरेल्वे विभागस्य प्रशासनं भवति । अस्य पूर्वतनं नाम विक्टोरिया टर्मिनस् इति आसीत् । दास्यस्य सङ्केतं दूरीकृत्य इदानीं महकलेः छात्रपतिशेवाजेः नाम्ना अभिजानन्ति । नाम ह्रस्वीकृत्य सि.एस्.टि. इति कथयन्ति । एतत् [[भारतम्|भारतस्य]] किञ्चित् वशिष्टम् ऐतिहासिकं च रेल्निस्थानकम् । अपि च मध्यभारतरेल्वेविभागस्य मुख्यभागः । भारतस्य व्यस्ततमनिस्थानकेषु अन्यतमम् । भारतस्य सर्वाधिकछायाचित्रीकृतस्थाम् एतत् छत्रपतिशिवाजीटर्मिनस् निस्थानकम् इति प्रसिद्दिः ।
==इतिहासः==
अस्य निर्माणं फ्रेड्रिक् विलियम् स्टीवन्स् इति वस्तुतन्त्रज्ञः १६.१४लक्षरूप्यकाणां व्ययेन क्रि.श. १८८८तमे वर्षे निर्मितवान् । एषः स्टीवन्स् अस्य मानचित्रम् एक्सल् हर्मन् इत्यनेन लेखितवान् । अस्य जलवर्णचित्रं स्वयं रचयित्वा तस्य शुल्कं स्वीकृत्य यूरोपदेशस्य प्रवासार्थं प्रस्थितवान् । तत्र अनेकानि रेल्वेनिस्थानकानि परिशीलनार्थम् अटितवान् । अन्तिम रूपणेन एतत् निस्थनकं लण्डन् नगरस्य सेण्ट् पैङ्क्रास् निस्थानकस्य प्रतिरूपमिव दृश्यते स्म ।
इस स्टेशन की अभिकल्पना [[फ्रेडरिक विलियम स्टीवन्स]], वास्तु सलाहकार [[१८८७]]-[[१८८८]], ने १६.१४ [[लाख]] रुपयों की राशि पर की थी। स्टीवन ने नक्शाकार [[एक्सल हर्मन]] द्वारा खींचे गये इसके एक जल-रंगीय चित्र के निर्माण हेतु अपना दलाली शुल्क रूप लिया था। इस शुल्क को लेने के बाद, स्टीवन [[यूरोप]] की दस-मासी यात्रा पर चला गया, जहां उसे कई स्टेशनों का अध्ययन करना था। इसके अंतिम रूप में [[लंदन]] के सेंट पैंक्रास स्टेशन की झलक दिखाई देती है। इसे पूरा होने में दस वर्ष लगे, और तब इसे शासक सम्राज्ञी [[महारानी विक्टोरिया]] के नाम पर विक्टोरिया टर्मिनस कहा गया।सन [[१९९६]] में, [[शिव सेना]] की मांग पर, तथा [[भारतीय पुनर्नामकरण विवाद|नामों को भारतीय नामों से बदलने]] की नीति के अनुसार, इस स्टेशन का नाम, राज्य सरकार द्वारा [[सत्रहवीं शताब्दी]] के [[मराठा]] शूरवीर शासक [[छत्रपति शिवाजी]] के नाम पर छत्रपति शिवाजी टर्मिनस बदला गया। फिर भी वी.टी. नाम आज भी लोगों के मुंह पर चढ़ा हुआ है। [[२ जुलाई]], [[२००४]] को इस स्टेशन को [[युनेस्को]] की विश्व धरोहर समिति द्वारा [[विश्व धरोहर स्थल]] घोषित किया गया।▼
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इस स्टेशन की इमारत [[विक्टोरियन गोथिक]] शैली में बनी है। इस इमारत में विक्टोरियाई इतालवी गोथिक शैली एवं परंपरागत भारतीय स्थापत्यकला का संगम झलकता है। इसके अंदरूनी भागों में लकड़ी की नक्काशि की हुई टाइलें, लौह एवं पीतल की अलंकृत मुंडेरें व जालियां, टिकट-कार्यालय की ग्रिल-जाली व वृहत सीढ़ीदार जीने का रूप, बम्बई कला महाविद्यालय (बॉम्बे स्कूल ऑफ आर्ट) के छात्रों का कार्य है। यह स्टेशन अपनी उन्नत संरचना व तकनीकी विशेषताओं के साथ, [[उन्नीसवीं शताब्दी]] के रेलवे स्थापत्यकला आश्चर्यों के उदाहरण के रूप में खड़ा है।
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