"केवलादेव्-राष्ट्रियोद्यानम्" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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'''केवलादेवराष्ट्रियोद्यानं ''' [[भारतम्|भारतदेशस्य]] [[राजस्थानराज्यम्|राजस्थानराज्ये]] अस्ति । एतत् किञ्चित् प्रसिद्धं पक्षिधाम । पूर्वम् अस्य नाम भरतपुरखगोद्यानम् इति आसीत् । केवलदेवराष्ट्रियोद्याने प्रतिशिशिरकालं सहस्राधिकाः सैबीरियाबलाकाः आगच्छन्ति । सहस्राधिकक्रोषकेभ्यः आगच्छताम् एतेषां सन्ततीनां विनाशकालः सन्निहितः । सामान्यतः २३०जातीयाः बलाकाः अत्र वासस्थानं कल्पितवन्तः । क्रि.श. १९८५तमे वर्षे एतदुद्यानं विश्वपरम्पारास्थानस्य आवल्यां युनेस्कोद्वारा प्रवेशितम् । अधुना एतत् यात्रिकानां प्रसिद्धं पर्यटनकेन्द्रम् अस्ति । बहुसङ्ख्याकाः खगजीवविज्ञानिनः शीतकाले अत्र आयान्ति
 
==इतिहासः==
'''ಕೇವಲಾದೇವ್ ರಾಷ್ಟ್ರೀಯ ಉದ್ಯಾನ'''ವು [[ಭಾರತ]]ದ [[ರಾಜಸ್ಥಾನ]] ರಾಜ್ಯದಲ್ಲಿದೆ. ಇದೊಂದು ಸುಪ್ರಸಿದ್ಧ ಪಕ್ಷಿಧಾಮವಾಗಿದ್ದು ಮೊದಲು ಇದರ ಹೆಸರು ಭರತ್‍‍ಪುರ್ ಪಕ್ಷಿಧಾಮ ಎಂಬುದಾಗಿತ್ತು. ಕೇವಲಾದೇವ್ ರಾಷ್ಟ್ರೀಯ ಉದ್ಯಾನಕ್ಕೆ ಪ್ರತಿ ಚಳಿಗಾಲದಲ್ಲಿ ಸಹಸ್ರಾರು ಸಂಖ್ಯೆಯಲ್ಲಿ [[ಸೈಬೀರಿಯನ್ ಕೊಕ್ಕರೆ]]ಗಳು ವಲಸೆ ಬರುತ್ತವೆ. ಸಾವಿರಾರು ಮೈಲಿ ದೂರದ [[ಸೈಬೀರಿಯಾ]]ದಿಂದ ಇಲ್ಲಿಗೆ ಬರುವ ಈ ಕೊಕ್ಕರೆಗಳು ಇಂದು ಅತಿ ತೀವ್ರವಾಗಿ ಅಳಿವಿನತ್ತ ಸಾಗುತ್ತಿರುವ ಜೀವತಳಿಗಳಲ್ಲಿ ಸೇರಿವೆ. ಸಮಾರು ೨೩೦ ಜಾತಿಯ ಪಕ್ಷಿಗಳು ಕೇವಲಾದೇವ್ ರಾಷ್ಟ್ರೀಯ ಉದ್ಯಾನವನ್ನು ತಮ್ಮ ವಾಸನೆಲೆಯನ್ನಾಗಿಸಿಕೊಂಡಿವೆ. ೧೯೮೫ರಲ್ಲಿ ಯುನೆಸ್ಕೋ ಕೇವಲಾದೇವ್ ರಾಷ್ಟ್ರೀಯ ಉದ್ಯಾನವನ್ನು [[ವಿಶ್ವ ಪರಂಪರೆಯ ತಾಣ]]ವಾಗಿ ಘೋಷಿಸಿತು.
अस्य पक्षिविहारस्थानस्य निर्माणं २५०वर्षेभ्यः पूर्वं कृतम् । अस्य नाम केवलादेवस्य (शिवः) मन्दिरस्य नाम अङ्कितम् । एतन्मन्दिरं तु पक्षिविहरधाम्नि एव प्रतिष्ठापितम् । एतत् प्राकृर्तिकप्रवणः इति कारणेन सर्वदा वर्षाकाले अत्र महापूरः आगच्छति ।
 
[[भरतपुर]] के शासक महाराज सूरजमल (१७२६ से १७६३ ) ने यहाँ ''अजान बाँध '' का निर्माण करवाया, यह बाँध दो नदियों गँभीर और बाणगंगा के संगम पर बनाया गया था।
 
यह उद्यान भरतपुर के महाराजाओं की पसंदीदा शिकारगाह था , जिसकी परम्परा १८५० से भी पहले से थी। यहाँ पर [[ब्रिटिश वायसराय]] के सम्मान में पक्षियों के सालाना शिकार का आयोजन होता था। १९३८ में करीब ४,२७३ पक्षियों का शिकार सिर्फ एक ही दिन में किया गया [[मेलोर्ड]] एवं [[टील]] जैसे पक्षी बहुतायत में मारे गये। उस समय के [[भारत के गवर्नर जनरल]]लिनलिथ्गो थे, जिनने अपने सहयोगी [[विक्टर होप]] के साथ इन्हें अपना शिकार बनाया।
 
भारत की स्वतंत्रता के बाद भी १९७२ तक भरतपुर के पूर्व राजा को उनके क्षेत्र में शिकार करने की अनुमति थी, लेकिन १९८२ से उद्यान में चारा लेने पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया जो यहाँ के किसानों, [[गुर्जर]] समुदाय और सरकार के बीच हिंसक लड़ाई का कारण बना ।
 
== जंतु समूह ==
यह पक्षीशाला शीत ऋतु में दुर्लभ जाति के पक्षियों का 'दूसरा घर' बन जाती है। साईबेरियाई सारस, घोमरा, उत्तरी शाह चकवा, जलपक्षी, लालसर बत्तख आदि जैसे विलुप्तप्राय जाति के अनेकानेक पक्षी यहाँ अपना बसेरा करते हैं।
 
==खतरा ==
सन २००४ के आखिर में [[वसुंधरा राजे]] की सरकार ने किसानों की ज़बरदस्ती के सामने घुटने टेक दिये और पक्षीशाला के लिए भेजे जाने वाले पानी को रोक दिया गया, जिसका परिणाम ये हुआ कि उद्यान के लिए पानी की आपूर्ति घट कर ५४०,०००,००० से १८,०००,००० घनफुट (15,000,000 to 510,000 मी³). रह गई। यह कदम यहाँ के पर्यावरण के लिए बहुत ही भयावह साबित हुआ। यहाँ की दलदली धरती सूखी एवं बेकार हो गई, ज्यादातर पक्षी उड़ कर दूसरी जगहों पर प्रजनन के लिए चले गए। बहुत सी पक्षी प्रजातियां [[नई दिल्ली]] से करीब ९० कि.मी. की दूरी पर [[गंगा नदी]] पर स्थित [[उत्तर प्रदेश]] के [[गढ़मुक्तेश्वर]] तक चली गयीं. पक्षियों के शिकार को पर्यावरण विशेषज्ञों ने निन्दनीय करार देते हुए इसके विरोध में उन्होंने न्यायालय में एक जनहित याचिका दाखिल की है।
 
==बाह्यानुबन्धाः==
"https://sa.wikipedia.org/wiki/केवलादेव्-राष्ट्रियोद्यानम्" इत्यस्माद् प्रतिप्राप्तम्