AbHiSHARMA143
AbHiSHARMA143 १९ मे २०१४ से सदस्य हैं
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पङ्क्तिः २:
अखण्डमंडलाकारं, व्याप्तं येन चराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्री गुरुवे नम:।।
गजाननं भूतगणादिसेवितं,
कपित्थजम्बू फल चारु भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं,
नमामिविघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।
व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे।
नमो वै ब्रह्मविधये वाशिष्ठाय नमों नम:।।
ब्रजे वसंतं नवनीत चौरं,
गोपाङ्गनानां च दुकूल चौरम्।।
अनेक जन्मार्जित पाप चौरं,
चौराग्रगण्यं शरणं प्रपद्ये।।
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'''हार्दं स्वागतम्'''
नमस्कार:,
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