"भगवान् दास" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पङ्क्तिः २८:
डा. भगवान्दास ने सभी धर्मो के अनुयायियों की नासमझी में भी समता दिखाई है। मेरा मजहब सबसे अच्छा है, दूसरे मजहबवालों को जबरदस्ती से अपने मजहब में लाना चाहिए, यह अहंकार सबमें देखा जाता है। यह नहीं समझते कि खास तरीके खास खास देशकाल अवस्था के लिए बताए गए हैं। अंत में डा. भगवान्दास ने इस बात पर बल दिया है कि आदमी की रूह इन सबों में बड़ी है। आदमियों ने ही मजहब की शक्ल समय-समय पर बदल डाली है।
==बाह्यसम्पर्कतन्तुः==
*[http://www.indianpost.com/viewstamp.php/Issue%20Date/year/1969/month/1/DR.%20BHAGVANDAS short biography] (indianpost.com)
{{भारतरत्नप्रशस्तिभूषिताः}}
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