"जयशङ्कर प्रसाद" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः ६:
 
बीती विभावरी जाग री!
अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा घट ऊषा नागरी।
खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लाई
मधु मुकुल नवल रस गागरी।
अधरों में राग अमंद पिये,
अलकों में मलयज बंद किये
तू अब तक सोई है आली
आँखों में भरे विहाग री।
 
 
"https://sa.wikipedia.org/wiki/जयशङ्कर_प्रसाद" इत्यस्माद् प्रतिप्राप्तम्