"जयशङ्कर प्रसाद" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पङ्क्तिः ६:
बीती विभावरी जाग री!
खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा,
अधरों में राग अमंद पिये,
अलकों में मलयज बंद किये
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