"१४. गुणत्रयविभागयोगः" इत्यस्य संस्करणे भेदः

त्
सत्त्व
पङ्क्तिः ६:
:[[14.3 मम योनिर्महदब्रह्म…..]]
:[[14.4 सर्वयोनिषु कौन्तेय…..]]
:[[14.5 सत्त्वं रजस्तम इति…इति...]]
:[[14.6 रजस्तमश्चाभिं…..]]
:[[14.7 रजो रागात्मकं…..]]
:[[14.8 तमस्त्वज्ञानजं…..]]
:[[14.9 सत्त्वं सुखे सञ्जं…सञ्जयति...]]
:[[14.10 रजस्तमश्चाभिं…..]]
{{भगवद्गीता}}
पङ्क्तिः १६:
:[[14.12 लोभः प्रवृत्तिः…..]]
:[[14.13 अप्रकाशो प्रवृत्तिं…..]]
:[[14.14 यदा सत्त्वे प्रवृद्धे…प्रवृद्धे तु...]]
:[[14.15 रजसि प्रलयं गत्वा…..]]
:[[14.16 कर्मणः सुकृतस्य…..]]
:[[सत्त्वात्सञ्जायते ज्ञानं...]]
:[[14.17 सत्त्वात् सञ्जायते…..]]
:[[14.18 ऊर्ध्वं गच्छन्ति…..]]
:[[14.19 नान्यं गुणेभ्यः…..]]
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