"०४. ज्ञानकर्मसंन्यासयोगः" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः ५:
==अध्यायसारः==
==श्लोकानाम् आवलिः==
:१) [[४.१ इमं विवस्वते योगं...]]
 
:[[४.२ एवं परम्परा.....]]
२) [[एवं परम्पराप्राप्तम्...]]
:[[४.३ स एवायम्.....]]
 
:[[४.४ अपरं भवतो...]]
३) [[स एवायं मया तेऽद्य...]]
:[[४.५ बहूनि मे.....]]
 
:[[४.६ अजोऽपि सन्...]]
४) [[अपरं भवतो जन्म...]]
:[[४.७ यदा यदा हि..]]
:[[४.८ परित्राणाय...]]
:[[४.९ जन्म कर्म च...]]
:[[४.१० वीतरागभयं....]]
{{भगवद्गीता}}
५) [[बहूनि मे व्यतीतानि...]]
:[[४.११ ये यथा माम्...]]
 
:[[४.१२ काङ्क्षन्तः....]]
६) [[अजोऽपि सन्नव्ययात्मा...]]
:[[४.१३ चातुर्वण्यम्....]]
 
:[[४.१४ न मां कर्माणि....]]
७) [[यदा यदा हि धर्मस्य...]]
:[[४.१५ एवं ज्ञात्वा कृतं...]]
 
:[[४.१६ कर्मणो ह्यपि...]]
८) [[परित्राणाय साधूनां...]]
:[[४.१७ कर्मण्य कर्म....]]
 
:[[४.१८ कर्मण्य कर्म् .....]]
९) [[जन्म कर्म च मे दिव्यम्...]]
:[[४.१९ यस्य सर्वे...]]
 
:[[४.२० त्यक्त्वा कर्मफं...]]
१०) [[वीतरागभयक्रोधा...]]
:[[४.२१ निराशीर्यतचिं...]]
 
:[[४.२२ यदृच्छालाभं...]]
११) [[ये यथा मां प्रपद्यन्ते...]]
:[[४.२३ गतसङ्गस्य मुक्तं..]]
 
:[[४.२४ ब्रह्मार्पणं ब्रह्म....]]
१२) [[काङ्क्षन्तः कर्मणां सिद्धिं...]]
:[[४.२५ दैवमेवापरे यज्ञम्...]]
 
:[[४.२६ श्रोत्रादीनीन्द्रं....]]
१३) [[चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं...]]
:[[४.२७ सर्वाणीन्द्रियं...]]
 
:[[४.२८ द्रव्ययज्ञाः तपों...]]
१४) [[न मां कर्माणि लिम्पन्ति...]]
:[[४.२९ अपाने जुह्वति...]]
 
:[[४.३० अपरे नियताहाराः...]]
१५) [[एवं ज्ञात्वा कृतं कर्म...]]
:[[४.३१ यज्ञशिष्टामृतभुजो...]]
 
:[[४.३२ एवं बहुविधाः...]]
१६) [[किं कर्म किमकर्मेति...]]
:[[४.३३ श्रेयान्द्रव्यमयात्...]]
 
:[[४.३४ तद्विद्धि प्रणिपातेन...]]
१७) [[कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं...]]
:[[४.३५ यज्ञात्वा न पुनः...]]
 
:[[४.३६ अपि चेदसि...]]
१८) [[कर्मण्यकर्म यः पश्येद्...]]
:[[४.३७ यथैधांसि समिद्धो...]]
 
:[[४.३८ नहि ज्ञानेन ...]]
१९) [[यस्य सर्वे समारम्भाः...]]
:[[४.३९ श्रद्धावान् लभते...]]
 
:[[४.४० अज्ञश्चाश्र्द्धधानः...]]
२०) [[त्यक्त्वा कर्मफलासङ्गं...]]
:[[४.४१ योगसन्यस्तं...]]
 
:[[४.४२ तस्मादज्ञानं...]]
२१) [[निराशीर्यतचित्तात्मा...]]
 
२२) [[यदृच्छालाभसन्तुष्टो...]]
 
२३) [[गतसङ्गस्य मुक्तस्य...]]
 
२४) [[ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविः...]]
 
२५) [[दैवमेवापरे यज्ञं...]]
 
२६) [[श्रोत्रादीनीन्द्रियाण्यन्ये...]]
 
२७) [[सर्वाणीन्द्रियकर्माणि...]]
 
२८) [[द्रव्ययज्ञास्तपोयज्ञा...]]
 
२९) [[अपाने जुह्वति प्राणं...]]
 
३०) [[अपरे नियताहाराः...]]
 
३१) [[यज्ञशिष्टामृतभुजो...]]
 
३२) [[एवं बहुविधा यज्ञा...]]
 
३३) [[श्रेयान्द्रव्यमयाद्यज्ञात्...]]
 
३४) [[तद्विद्धि प्रणिपातेन...]]
 
३५) [[यज्ज्ञात्वा न पुनर्मोहम्...]]
 
३६) [[अपि चेदसि पापेभ्यः...]]
 
३७) [[यथैधांसि समिद्धोऽग्निः...]]
 
३८) [[न हि ज्ञानेन सदृशं...]]
 
३९) [[श्रद्धावॉंल्लभते ज्ञानं...]]
 
४०) [[अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च...]]
 
४१) [[योगसंन्यस्तकर्माणं...]]
 
४२) [[तस्मादज्ञानसम्भूतं...]]
 
==सम्बद्धसम्पर्कतन्तुः==
"https://sa.wikipedia.org/wiki/०४._ज्ञानकर्मसंन्यासयोगः" इत्यस्माद् प्रतिप्राप्तम्