"कलियुगम्" इत्यस्य संस्करणे भेदः

कलियुगं पारम्परिकभारतस्य चतुर्थं युगम् अस्त... नवीनं पृष्ठं निर्मितमस्ति
 
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== पौराणिपृष्ठभूमिः ==
धार्मराजः [[युधिष्ठिरः]], भीमसेनः, अर्जुनः, नकुलः, सहदेवः च पञ्च पाण्डवाः माहापराक्रमिणे [[परीक्षितः|परीक्षिताय]] राज्यं समर्प्य महाप्रायाणस्य आरम्बम् अकुर्वन् । अपि च तं पुण्यलोकं प्राप्नुवन् । राजा परीक्षितः धर्मानुसारं ब्राह्मणानम् आज्ञानुसारं राज्यं प्रशासितुम् आरब्धवान् । उत्तरनरेशस्य पुत्रीम् [[इरावती|इरावतीं]] परिणीतवान् । अस्य सुखदाम्पत्यस्य फलरूपेण चत्वारः पुत्राः समभवन् । आचार्यं कृपं गुरुं कृत्वा [[जाह्नवी|जाह्नव्याः]] तटे त्रयः अश्वमेधयागान् अकुर्वन् । यज्ञव्याजेन यथेष्टं धनराशिं ब्राह्मणेषु वितीर्णवन्तः । पुनः दिग्विजयार्थं प्रातिष्ठन्त ।
 
{{भारतीयकालमानः}}
राजा परीक्षित धर्म के अनुसार तथा ब्राह्नणों की आज्ञानुसार शासन करने लगे। उत्तर नरेश की पुत्री [[इरावती]] के साथ उन्होंने अपना विवाह किया और उस उत्तम पत्नी से उनके चार पुत्र उत्पन्न हुये। आचार्य कृप को गुरु बना कर उन्होंने [[जाह्नवी]] के तट पर तीन अश्वमेघ यज्ञ किये। उन यज्ञों में अनन्त धन राशि ब्रह्मणों को दान में दी और दिग्विजय हेतु निकल गये।
 
उन्हीं दिनों धर्म ने बैल का रूप बना कर गौरूपिणी पृथ्वी से सरस्वती तट पर भेंट किया। गौरूपिणी पृथ्वी की नेत्रों से अश्रु बह रहे थे और वह श्रीहीन सी प्रतीत हो रही थी। धर्म ने पृथ्वी से पूछा - "हे देवि! तुम्हारा मुख मलिन क्यों हो रहा है? किस बात की तुम्हें चिन्ता है? कहीं तुम मेरी चिन्ता तो नहीं कर रही हो कि अब मेरा केवल एक पैर ही रह गया है या फिर तुम्हें इस बात की चिन्ता है कि अब तुम पर शूद्र राज्य करेंगे?"
"https://sa.wikipedia.org/wiki/कलियुगम्" इत्यस्माद् प्रतिप्राप्तम्