"घटोत्कचः" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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==हिडिम्बामिलनम्==
तस्मिन् एव वने हिडिम्बः नाम कश्चित् भयानकः असुरः निवसति स्म । तत्र पाण्डवानाम् आगमनेन मानवानाम् गन्धं प्राप्य सः तान् गृहीतुम् स्वसहोदरीं हिडिम्बां प्रेषितवान् । तत्र गता हिडिम्बाः संरक्षणं कुर्वतः भीमास्य अङ्गसौष्ठवं सुन्दरवदनं च दृष्ट्वा अनुरक्ता अभवत् । सा तस्याः रक्षसीमायया अपूर्वा सुन्दरी अभवत् । भीमसेनस्य समीपम् आगतां तां [[भीमसेनः]] अपृच्छत् सुन्दरि का भवती रात्रिसमये अस्मिन् भकङ्करे कानने एकाङ्गिनी किं करोति ? हिडिम्बा उक्तवती हे नरश्रेष्ठ अहं हिडिम्बा नाम राक्षसी । युष्मान् सर्वान् भक्षितुं बद्ध्वा अनेतुं मे पिता आदिष्टवान् । किन्तु मम हृदयेन भवान् अकृष्टः । अहं भवन्तं पतिरूपेण प्राप्तुम् इच्छामि । मम सहोदरः हिडिम्बः दुष्टः महाक्रूरः च किन्तु तस्य तस्य बन्धानात् भवतः सर्वान् मोचयित्वा सुरक्षितस्थानपर्यन्तं प्रापयिष्यामि । हिडिम्बायाः आगमनं विलम्बमानं दृष्ट्वा हिडिम्बः ताम् अन्विष्य तत् स्थानमागतवान् यत्र हिडिम्बा भीमेन सह अस्ति । भीमसेनेन सह प्रेमालपयन्तीं हिडिम्बां दृष्ट्वा क्रोधितः । तां दण्डयितुं तस्याः समीपं गच्छन्तं हिडिम्बम् अवरुध्य भीमसेनः रे दुष्ट राक्षस स्त्रीं ताडयितुं त्वया लज्जा नानुभूयते किम् ? यदि भवान् तावान् वीरः तर्हि मया सह युद्धं करोतु । एवमुक्त्वा भीमः तेन सह मल्लयुद्धम् आरब्धवान् । कोलाहलं श्रुत्वा कुन्ती अन्ये च पाण्डवाः जागरिताः । तत्र राक्षसेन सह युद्धं कुर्वाणं भीमं, पार्श्वे सुन्दरीं कन्यां च दृष्ट्वा [[कुन्ती]] अवदत् । पुत्री का त्वम् इति । हिडिम्बा तु सर्वं वृत्तान्तं न्यवेदयत् । [[अर्जुनः]] धनुः गृहीत्वा हिडिम्बा मारयितुम् उद्युक्तः । किन्तु [[भीमः]] बाणत्यागेन तं निवारितवान् । यतो हि सः भीमस्य वैरी भीमः एव हनिष्यति । पश्चात् भीमं हिडिम्बं सम्यक् गृगीत्वा वायुमण्डले बहुवाअं परिक्राम्य भूमौ निपातितवान् येन हिडिम्बः गतासुः अभवत् ।
 
इधर अपनी बहन को लौट कर आने में विलम्ब होता देख कर हिडिम्ब उस स्थान में जा पहुँचा जहाँ पर हिडिम्बा भीमसेन से वार्तालाप कर रही थी। हिडिम्बा को भीमसेन के साथ प्रेमालाप करते देखकर वह क्रोधित हो उठा और हिडिम्बा को दण्ड देने के लिये उसकी ओर झपटा। यह देख कर भीम ने उसे रोकते हुये कहा, "रे दुष्ट राक्षस! तुझे स्त्री पर हाथ उठाते लज्जा नहीं आती? यदि तू इतना ही वीर और पराक्रमी है तो मुझसे युद्ध कर।" इतना कह कर भीमसेन ताल ठोंक कर उसके साथ मल्ल युद्ध करने लगे। [[कुंती]] तथा अन्य पाण्डव की भी नींद खुल गई। वहाँ पर भीम को एक राक्षस के साथ युद्ध करते तथा एक रूपवती कन्या को खड़ी देख कर कुन्ती ने पूछा, "पुत्री! तुम कौन हो?" हिडिम्बा ने सारी बातें उन्हें बता दी।
 
[[अर्जुन]] ने हिडिम्ब को मारने के लिये अपना धनुष उठा लिया किन्तु भीम ने उन्हें बाण छोड़ने से मना करते हुये कहा, "अनुज! तुम बाण मत छोडो़, यह मेरा शिकार है और मेरे ही हाथों मरेगा।" इतना कह कर भीम ने हिडिम्ब को दोनों हाथों से पकड़ कर उठा लिया और उसे हवा में अनेक बार घुमा कर इतनी तीव्रता के साथ भूमि पर पटका कि उसके प्राण-पखेरू उड़ गये।
 
हिडिम्ब के मरने पर वे लोग वहाँ से प्रस्थान की तैयारी करने लगे, इस पर हिडिम्बा ने कुन्ती के चरणों में गिर कर प्रार्थना करने लगी, "हे माता! मैंने आपके पुत्र भीम को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया है। आप लोग मुझे कृपा करके स्वीकार कर लीजिये। यदि आप लोगों ने मझे स्वीकार नहीं किया तो मैं इसी क्षण अपने प्राणों का त्याग कर दूँगी।" हिडिम्बा के हृदय में भीम के प्रति प्रबल प्रेम की भावना देख कर [[युधिष्ठिर]] बोले, "हिडिम्बे! मैं तुम्हें अपने भाई को सौंपता हूँ किन्तु यह केवल दिन में तुम्हारे साथ रहा करेगा और रात्रि को हम लोगों के साथ रहा करेगा।" हिडिंबा इसके लिये तैयार हो गई और भीमसेन के साथ आनन्दपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगी। एक वर्ष व्यतीत होने पर हिडिम्बा का पुत्र उत्पन्न हुआ। उत्पन्न होते समय उसके सिर पर केश (उत्कच) न होने के कारण उसका नाम घटोत्कच रखा गया। वह अत्यन्त मायावी निकला और जन्म लेते ही बड़ा हो गया।
"https://sa.wikipedia.org/wiki/घटोत्कचः" इत्यस्माद् प्रतिप्राप्तम्