"रावणः" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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[[चित्रम्:Ravana.jpg|thumb|200px|लङ्केशः रावणः]]
'''रावणः''' [[रामायणम्|रामायणस्य]] काचित् विशेषभूमिका । लङ्काधिपः एषः प्राचीनभातेतिहासगतः विशिष्टपुरुषः । प्राचीनकालस्य एव वर्णसङ्करः । अस्य पिता ब्राह्मणः विश्वावसुः माता रक्षसकुलसभूता कैकसा । ब्रह्माणमधिकृत्य दशसहस्रवर्षाणि यावत् तपस्याम् आचरति। विशिष्टं वरमेकं प्राप्नोति च यत् देवताभ्यः अथवा अन्येभ्यः शक्तिभ्यः मरणं न प्राप्नुयामिति । रावणस्य दशशिरांसि, विंशतिहस्ताः, [[ब्रह्मा|ब्रह्मणः]] वरकारणात् चिरंजीवित्वं, एवं सर्वस्मात् कारणात् रावणः लोककण्टकः अभवत् ।
==रावणोदयः==
[[पद्मपुराणम्]], [[श्रीमद्भागवतपुराणम्]], [[कूर्मपुराणम्]], [[रामायणम्]], [[महाभारतम्]], [[आनन्दरामायणम्]], [[दशावतारचरितम्]] इत्यदिषु ग्रन्थेषु रावणस्य उल्लेखः कृतः । किन्तु अस्य जन्मनः कथाविषये वैविध्यम् अस्ति ।
*पद्मपुराणश्रीमद्भागवतानुसारं हिरण्याक्षः हिरण्यकश्यपुः च अग्रिमजन्मनि रावणकुम्भकरौ अभवताम् ।
*वाल्मीकिरामायणानुगुणं रावणः पुलस्त्यमुनेः पौत्रः। विश्वावसोः पुत्रः । विश्वावसोः वरवर्णिनी कैकसा चेति द्वे भार्ये आस्ताम् । वरवर्णिन्याः कुबेरः कैकसायाः रावणः च पुत्रौ अभवताम् ।
* तुलसीदासस्य रामचरितमानसानुगुणं रावणस्य जन्म शापस्य कारणेन अभवत् । नारदस्य प्रतापभानोः च कथायायाः कारणेन रावणस्य जन्म अभवत् इति ।
पूर्वकाले ब्रह्मा अनेकान् जलजन्तून् निर्मीय तान् समुद्रजलस्य रक्षणं कर्तुं नियुक्तवान् । तत्र केचन प्राणयः अवदन् वयं रक्षणं कुर्मः । केचन अवदन् वयं पूजां कुर्मः इति ।
▲'''मोटा पाठ'''==रावणजननकथा==
पूर्वकाल में [[ब्रह्मा]] जी ने अनेक जल जन्तु बनाये और उनसे समुद्र के जल की रक्षा करने के लिये कहा। तब उन जन्तुओं में से कुछ बोले कि हम इसका रक्षण (रक्षा) करेंगे और कुछ ने कहा कि हम इसका यक्षण (पूजा) करेंगे। इस पर ब्रह्माजी ने कहा कि जो रक्षण करेगा वह [[राक्षस]] कहलायेगा और जो यक्षण करेगा वह [[यक्ष]] कहलायेगा। इस प्रकार वे दो जातियों में बँट गये। राक्षसों में [[हेति]] और [[प्रहेति]] दो भाई थे। प्रहेति तपस्या करने चला गया, परन्तु हेति ने [[भया]] से विवाह किया जिससे उसके [[विद्युत्केश]] नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। विद्युत्केश के [[सुकेश]] नामक पराक्रमी पुत्र हुआ। सुकेश के [[माल्यवान]], [[सुमाली]] और [[माली]] नामक तीन पुत्र हुये। तीनों ने ब्रह्मा जी की तपस्या करके यह वरदान प्राप्त कर लिये कि हम लोगों का प्रेम अटूट हो और हमें कोई पराजित न कर सके। वर पाकर वे निर्भय हो गये और सुरों, असुरों को सताने लगे। उन्होंने [[विश्वकर्मा]] से एक अत्यन्त सुन्दर नगर बनाने के लिये कहा। इस पर विश्वकर्मा ने उन्हें [[लंका]] पुरी का पता बताकर भेज दिया। वहाँ वे बड़े आनन्द के साथ रहने लगे। माल्यवान के [[वज्रमुष्टि]], [[विरूपाक्ष]], [[दुर्मुख]], [[सुप्तघ्न]], [[यज्ञकोप]], [[मत्त]] और [[उन्मत्त]] नामक सात पुत्र हुये। सुमाली के [[प्रहस्त्र]], [[अकम्पन]], [[विकट]], [[कालिकामुख]], [[धूम्राक्ष]], [[दण्ड]], [[सुपार्श्व]], [[संह्नादि]], [[प्रधस]] एवं [[भारकर्ण]] नाम के दस पुत्र हुये। माली के [[अनल]], [[अनिल]], [[हर]] और [[सम्पाती]] नामक चार पुत्र हुये। ये सब बलवान और दुष्ट प्रकृति होने के कारण ऋषि-मुनियों को कष्ट दिया करते थे। उनके कष्टों से दुःखी होकर ऋषि-मुनिगण जब भगवान [[विष्णु]] की शरण में गये तो उन्होंने आश्वासन दिया कि हे ऋषियों! मैं इन दुष्टों का अवश्य ही नाश करूँगा।
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