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==रावणजननकथा==
पूर्वकाले ब्रह्मा अनेकान् जलजन्तून् निर्मीय तान् समुद्रजलस्य रक्षणं कर्तुं नियुक्तवान् । तत्र केचन प्राणयः अवदन् वयं रक्षणं कुर्मः । केचन अवदन् वयं पूजां कुर्मः इति । तदा ब्रह्मा अवदत् ये रक्षणं कुर्वन्ति ते राक्षसाः ये पूजां कुर्वन्ति ते यक्षाः इति कथ्यन्ते । राक्षसेषु हेति प्रहेति इति दौ सहौदरौ आस्ताम् । प्रहेतिः तपः कर्तुम् अगच्छत् । हेतिः भया इति कन्यं परिणीतवन् । दाम्पत्यफलेन विद्युत्कोशः इति पुत्रं प्राप्तवान् । विद्युत्कोशस्य कुकोशः इति पराक्रमी पुत्रः अभवत् । सुकेशः माल्यवान्, सुमाली, माली इति पुत्रत्रयम् अवाप्नोत् । त्रयः अपि ब्रह्मणः तपः कृत्वा लोकस्य अनुपमं प्रेम लभेम अपि च अस्मान् न कोऽपि परास्तान् न कुर्यात् इति वरम् अवाप्नुवन् । वरबलान्विताः एते सुरान् असुरान् च पीडयितुम् समारभन्त । ते विश्वकर्माणम् एकं सुन्दरं नगरं निर्मातुम् अवदन् । तदा [[विश्वकर्मा]] लङ्कानगरस्य सङ्केतम् उक्त्वा तत्र प्रेषितवान् । तत्र ते आनन्देन न्यवसन् । कालक्रमेण माल्यवतः वज्रमुष्टिः, विरूपाक्षः, दुर्मुखः, सुप्तघ्नः, यज्ञकोपः, मत्तः, उन्मत्तः, इत्यादीन् पुत्राः अभवन् । सुमालिः प्रहस्तः, अकम्पनः, विकटः, कालिकामुखः, धूम्राक्षः, दण्डः, सुपार्श्वः, संह्नादिः, प्रधसः, भरकर्णः इति पुत्रान् अलभत । माल्याः अनलः, अनिलः, हरः, सम्पातिः, इति पुत्रा अभवन् । एते सर्वेपि पुत्राः बलवन्तः दुराचारिणः एव अभवन् । प्रतिदिनम् ऋषिमुनीन् पीडयन्ति स्म । कष्टम् असहमानाः ऋषिमुनयः महाविष्णोः निकटम् अगच्छन् । साधूनां रक्षणं करिष्यामि इति सः आश्वसनं दत्तवान् । इमां वार्तां श्रुत्वा ते सर्वेऽपि राक्षसाः मिलित्वा मालिं सेनापतिं कृत्वा इन्द्रलोके आक्रमणम् अकुर्वन् । समाचारं प्राप्यः विष्णुः स्वास्त्रशस्त्राणि अवलम्ब्य राक्षसानां संहारं कर्तुमारब्धवान् । सेनपतिना मालिना सह नैके राक्षसाः हताः । अवशिष्टाः लङ्कापरिमुखं प्रधाविताः ।
पूर्वकाले ब्रह्मा अनेकान् जलजन्तून् निर्मीय तान् समुद्रजलस्य रक्षणं कर्तुं नियुक्तवान् । तत्र केचन प्राणयः अवदन् वयं रक्षणं कुर्मः । केचन अवदन् वयं पूजां कुर्मः इति ।
 
पूर्वकाल में [[ब्रह्मा]] जी ने अनेक जल जन्तु बनाये और उनसे समुद्र के जल की रक्षा करने के लिये कहा। तब उन जन्तुओं में से कुछ बोले कि हम इसका रक्षण (रक्षा) करेंगे और कुछ ने कहा कि हम इसका यक्षण (पूजा) करेंगे। इस पर ब्रह्माजी ने कहा कि जो रक्षण करेगा वह [[राक्षस]] कहलायेगा और जो यक्षण करेगा वह [[यक्ष]] कहलायेगा। इस प्रकार वे दो जातियों में बँट गये। राक्षसों में [[हेति]] और [[प्रहेति]] दो भाई थे। प्रहेति तपस्या करने चला गया, परन्तु हेति ने [[भया]] से विवाह किया जिससे उसके [[विद्युत्केश]] नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। विद्युत्केश के [[सुकेश]] नामक पराक्रमी पुत्र हुआ। सुकेश के [[माल्यवान]], [[सुमाली]] और [[माली]] नामक तीन पुत्र हुये। तीनों ने ब्रह्मा जी की तपस्या करके यह वरदान प्राप्त कर लिये कि हम लोगों का प्रेम अटूट हो और हमें कोई पराजित न कर सके। वर पाकर वे निर्भय हो गये और सुरों, असुरों को सताने लगे। उन्होंने [[विश्‍वकर्मा]] से एक अत्यन्त सुन्दर नगर बनाने के लिये कहा। इस पर विश्‍वकर्मा ने उन्हें [[लंका]] पुरी का पता बताकर भेज दिया। वहाँ वे बड़े आनन्द के साथ रहने लगे। माल्यवान के [[वज्रमुष्टि]], [[विरूपाक्ष]], [[दुर्मुख]], [[सुप्तघ्न]], [[यज्ञकोप]], [[मत्त]] और [[उन्मत्त]] नामक सात पुत्र हुये। सुमाली के [[प्रहस्त्र]], [[अकम्पन]], [[विकट]], [[कालिकामुख]], [[धूम्राक्ष]], [[दण्ड]], [[सुपार्श्‍व]], [[संह्नादि]], [[प्रधस]] एवं [[भारकर्ण]] नाम के दस पुत्र हुये। माली के [[अनल]], [[अनिल]], [[हर]] और [[सम्पाती]] नामक चार पुत्र हुये। ये सब बलवान और दुष्ट प्रकृति होने के कारण ऋषि-मुनियों को कष्ट दिया करते थे। उनके कष्टों से दुःखी होकर ऋषि-मुनिगण जब भगवान [[विष्णु]] की शरण में गये तो उन्होंने आश्‍वासन दिया कि हे ऋषियों! मैं इन दुष्टों का अवश्य ही नाश करूँगा।
 
जब राक्षसों को विष्णु के इस आश्‍वासन की सूचना मिली तो वे सब मन्त्रणा करके संगठित हो माली के सेनापतित्व में इन्द्रलोक पर आक्रमण करने के लिये चल पड़े। समाचार पाकर भगवान विष्णु ने अपने अस्त्र-शस्त्र संभाले और राक्षसों का संहार करने लगे। सेनापति माली सहित बहुत से राक्षस मारे गये और शेष लंका की ओर भाग गये। जब भागते हुये राक्षसों का भी नारायण संहार करने लगे तो माल्यवान क्रुद्ध होकर युद्धभूमि में लौट पड़ा। भगवान विष्णु के हाथों अन्त में वह भी काल का ग्रास बना। शेष बचे हुये राक्षस सुमाली के नेतृत्व में लंका को त्यागकर पाताल में जा बसे और लंका पर कुबेर का राज्य स्थापित हुआ। राक्षसों के विनाश से दुःखी होकर सुमाली ने अपनी पुत्री [[कैकसी]] से कहा कि पुत्री! राक्षस वंश के कल्याण के लिये मैं चाहता हूँ कि तुम परम पराक्रमी महर्षि [[विश्वश्रवा]] के पास जाकर उनसे पुत्र प्राप्त करो। वही पुत्र हम राक्षसों की देवताओं से रक्षा कर सकता है।
 
पिता की आज्ञा पाकर कैकसी विश्रवा के पास गई। उस समय भयंकर आँधी चल रही थी। आकाश में मेघ गरज रहे थे। कैकसी का अभिप्राय जानकर विश्रवा ने कहा कि भद्रे! तुम इस कुबेला में आई हो। मैं तुम्हारी इच्छा तो पूरी कर दूँगा परन्तु इससे तुम्हारी सन्तान दुष्ट स्वभाव वाली और क्रूरकर्मा होगी। मुनि की बात सुनकर कैकसी उनके चरणों में गिर पड़ी और बोली कि भगवन्! आप ब्रह्मवादी महात्मा हैं। आपसे मैं ऐसी दुराचारी सन्तान पाने की आशा नहीं करती। अतः आप मुझ पर कृपा करें। कैकसी के वचन सुनकर मुनि विश्रवा ने कहा कि अच्छा तो तुम्हारा सबसे छोटा पुत्र सदाचारी और धर्मात्मा होगा।
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