"रावणः" इत्यस्य संस्करणे भेदः
Content deleted Content added
पङ्क्तिः २३:
==बलिना सह रावणमैत्री==
कथञ्चिदपि रावणस्य औद्धत्यं क्षीणं नाभवत् । राक्षसं वा मानवं वा शक्तिशलिनं पश्यति चेत् उद्धाटयतु । किष्किन्दायाः राजा बलिः बलवान् इति वर्तां श्रुत्वा रावणः युद्धार्थं तत्र गतवान् । तस्मिन् समये वालिः सन्ध्योपसानर्थं नदीतटं गतवान् सः एव भवता सह योद्धुं शक्नोति । भवान् कञ्चित्कालं इति वालेः पत्नी [[तारा]], तारायाः पिता [[सुषेणः]], युवराट् [[अङ्गदः]] वालेः सोदरः [[सुग्रीवः]] च रावणम् अवदन् ।
सुग्रीव के वचन सुनकर रावण विमान पर सवार हो तत्काल दक्षिण सागर में उस स्थान पर जा पहुँचा जहां बालि सन्ध्या कर रहा था। उसने सोचा कि मैं चुपचाप बालि पर आक्रमण कर दूँगा। बालि ने रावण को आते देख लिया परन्तु वह तनिक भी विचलित नहीं हुआ और वैदिक मन्त्रों का उच्चारण करता रहा। ज्योंही उसे पकड़ने के लिये रावण ने पीछे से हाथ बढ़ाया, सतर्क बालि ने उसे पकड़कर अपनी काँख में दबा लिया और आकाश में उड़ चला। रावण बार-बार बालि को अपने नखों से कचोटता रहा किन्तु बालि ने उसकी कोई चिन्ता नहीं की। तब उसे छुड़ाने के लिये रावण के मन्त्री और अनुचर उसके पीछे शोर मचाते हुये दौड़े परन्तु वे बालि के पास तक न पहुँच सके। इस प्रकार बालि रावण को लेकर पश्चिमी सागर के तट पर पहुँचा। वहाँ उसने सन्ध्योपासना पूरी की। फिर वह दशानन को लिये हुये किष्किन्धापुरी लौटा। अपने उपवन में एक आसन पर बैठकर उसने रावण को अपनी काँख से निकालकर पूछा कि अब कहिये आप कौन हैं और किसलिये आये हैं?
|