"केवलादेव्-राष्ट्रियोद्यानम्" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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एतत् पक्षिधाम शिशिरर्तौ शीतकाले विशिष्टानां विरलदर्शनानां खगानाम् आवासः भवति । सैबेरियस्य बलाकाः, गोमराः, उत्तरीशाह चकवा, जलपक्षी, लालसरः, बत्तखः आद्ययः विचित्राः पक्षिणः विलुप्तप्रायाः अत्र दृश्यन्ते ।
 
==खतरा अपायः==
क्रि.श.२००४तमवर्षे वसुन्धरा राजे इत्यस्याः सर्वकारः कृषकानाम् आग्रहस्य पुरतः अवनतः अभवत् । अतः पक्षिधाम्नि प्रवहणस्य जलं स्थगितम् । अस्य परिणामवशात् । एतस्मात् निर्णयकारणात् परिसरे भयानकः परिणामः आभवत् । नदितटस्य पङ्कभूमिः शुष्का अप्रयोजिका अभवत् । अधिककाधिकपक्षिणः उडीय सन्तानोत्पत्तये अन्यत्र अगच्छन् । अनेके खगाः [[देहली]]तः ९०की.मी.दूरे [[गङ्गादी]]तटे स्थितं गढमुक्तेश्वरः इति [[उत्तरप्रदेशराज्यम्|उत्तरप्रदेशराज्यस्य]] स्थानम् अगच्छन् ।
सन २००४ के आखिर में [[वसुंधरा राजे]] की सरकार ने किसानों की ज़बरदस्ती के सामने घुटने टेक दिये और पक्षीशाला के लिए भेजे जाने वाले पानी को रोक दिया गया, जिसका परिणाम ये हुआ कि उद्यान के लिए पानी की आपूर्ति घट कर ५४०,०००,००० से १८,०००,००० घनफुट (15,000,000 to 510,000 मी³). रह गई। यह कदम यहाँ के पर्यावरण के लिए बहुत ही भयावह साबित हुआ। यहाँ की दलदली धरती सूखी एवं बेकार हो गई, ज्यादातर पक्षी उड़ कर दूसरी जगहों पर प्रजनन के लिए चले गए। बहुत सी पक्षी प्रजातियां [[नई दिल्ली]] से करीब ९० कि.मी. की दूरी पर [[गंगा नदी]] पर स्थित [[उत्तर प्रदेश]] के [[गढ़मुक्तेश्वर]] तक चली गयीं. पक्षियों के शिकार को पर्यावरण विशेषज्ञों ने निन्दनीय करार देते हुए इसके विरोध में उन्होंने न्यायालय में एक जनहित याचिका दाखिल की है।
 
==बाह्यानुबन्धाः==
"https://sa.wikipedia.org/wiki/केवलादेव्-राष्ट्रियोद्यानम्" इत्यस्माद् प्रतिप्राप्तम्