"जयशङ्कर प्रसाद" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पङ्क्तिः १:
'''जयशंकर प्रसाद'''
हिन्दी भाषाया: महान लेखक: आसीत्.
बीती विभावरी जाग री!
बीती विभावरी जाग री!
अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा घट ऊषा नागरी।
खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लाई
मधु मुकुल नवल रस गागरी।
अधरों में राग अमंद पिये,
अलकों में मलयज बंद किये
तू अब तक सोई है आली
आँखों में भरे विहाग री।
- जयशंकर प्रसाद
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