"कबीरदासः" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पङ्क्तिः ३:
His monist philosophies and ideas of loving devotion to God are expressed in metaphor and language from both the Hindu [[Vedanta]] and [[Bhakti]]
streams.
भजो रे भैया
-- संत कबीर
भजो रे भैया राम गोविंद हरी ।
राम गोविंद हरी भजो रे भैया राम गोविंद हरी ॥
जप तप साधन नहिं कछु लागत, खरचत नहिं गठरी ॥
संतत संपत सुख के कारन, जासे भूल परी ॥
कहत कबीर राम नहीं जा मुख, ता मुख धूल भरी ॥
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