"मीराबाई" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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पङ्क्तिः ८४:
 
- मीराबाई
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=== मने चाकर राखो जी ===
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श्याम मने चाकर राखो जी,
चाकर रहसूं बाग लगासूं नित उठ दर्सन पासूं।
बृंदाबन की कुंज गलिन में तेरी लीला गासूं।
श्याम मने चाकर राखो जी।।
चाकरी में दर्सन पाऊं, सुमिरन पाऊं खरची।
भाव भक्ति जागीरी पाऊं, तीनों बातां सरसी।
श्याम मने चाकर राखो जी।।
मोर मुकुट पीतांबर सोहे, गल बैजन्ती माला।
बृन्दावन में धेनु चरावे मोहन मुरली वाला।
श्याम मने चाकर राखो जी।।
मीरा के प्रभु गहिर गंभीरा सदा रहो जी धीरा।
आधी रात प्रभु दर्सन दीन्हें प्रेम नदी के तीरा।
श्याम मने चाकर राखो जी।।
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