सदस्यः:जैन/प्रयोगपृष्ठम्
तत्तवार्थधिगमे (मोक्षशास्त्र) जैन आचार्य उमास्वामी द्वारा रचित एक प्रसिद्ध जैन ग्रन्थ है।[१] इसे 'तत्त्वार्थ-अधिगम-सूत्र' तथा 'मोक्ष-शास्त्र' भी कहते हैं। यह पहला जैन ग्रन्थ है जो संस्कृत भाषा में लिखा गया है[१]। इसमें दस अध्याय तथा ३५० सूत्र हैं। उमास्वामी सभी जैन मतावलम्बियों द्वारा मान्य हैं। उनका जीवनकाल २री शताब्दी है।
दस अध्याय
सम्पादयतुतत्तवार्थधिगमे दस अध्याय इस प्रकार है [२]:-
- दर्शन और ज्ञान
- जीव के भेद
- उर्ध लोक और मध्य लोक
- देव
- अजीव के भेद
- आस्रव
- पाँच व्रत
- कर्म बंध
- कर्म निर्जरा
- मोक्ष
सूत्र
सम्पादयतुपहला सूत्र
सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग:
—1-1
"परस्परोपग्रहो जीवानाम् (५.२१): यह सूत्र जैन धर्म का आदर्श-वाक्य है। यह जैन प्रतीक चिन्ह के अंत में लिखा जाता है।
सन्दर्भ
सम्पादयतु- ↑ १.० १.१ जैन & २०११, p. vi.
- ↑ जैन & २०११, p. xi.
सन्दर्भ सूची
सम्पादयतु- जैन, विजय कुमार (२०११). आचार्य उमास्वामी तत्तवार्थसूत्र. Vikalp Printers. ISBN 978-81-903639-2-1.