सदस्यः:Nityashree Ramakrishna/प्रयोगपृष्ठम्/1
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मम छायाचित्रः | |
नाम | नित्यश्री रामक्रिष्ण |
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जन्म |
नित्यश्री रामक्रिष्ण २8 अप्रिल् १९९७ बेङलुरु |
वास्तविकं नाम | नित्यश्री रामक्रिष्ण |
राष्ट्रियत्वम् | भारतीयः |
देशः | भारतः |
निवासः | बेङलुरु |
भाषा | कन्नड, हिन्दी, अंग्रेजी |
देशजातिः | भारतीयः |
विद्या उद्योगः च | |
जीविका | विद्यार्थी |
प्रयोक्तृर्नाम | क्राइस्ट विश्वविद्यालय |
विद्या | Arts |
प्राथमिक विद्यालयः | केन्द्रिय विद्यालय, मल्लेष्वरम् |
पदवीपूर्व-महाविद्यालयः | केन्द्रिय विद्यालय, मल्लेष्वरम् |
विद्यालयः | केन्द्रिय विद्यालय, मल्लेष्वरम् |
महाविद्यालयः | केन्द्रिय विद्यालय, मल्लेष्वरम् |
विश्वविद्यालयः | क्राइस्ट विश्वविद्यालय |
रुचयः, इष्टत्मानि, विश्वासः | |
रुचयः | संगीत श्रवणम्, पुस्तक पठनम्, चलत्तचित्रम् |
धर्मः | हिन्दु |
राजनीतिः | स्वतंत्र |
चलच्चित्राणि | मनोरंजनाय (हिन्दी- बाहुबलि, ३ इडियट्स, आरक्शण, राजनिति, गङाजल) |
पुस्तकानि | बहवः (नूतनवाचन पुस्तकानि - शिवा ट्रायोलॉजि, द ग्रेण्ड सिस्टम) |
सम्पर्क समाचारम् | |
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फ़्एसबुक | Nityashree Ramakrishna |
प्रणामाः! मम नाम नित्यश्री रामकृष्ण। मम स्वक्शेत्रम् बेङ्गळूरु। मम मातुः नाम लता। मम पितुः नाम रामकृष्ण। केन्द्रीय विद्यालये विद्याभ्यासम् कृतम् मया। अधुना क्रैस्ट् सम्स्थायाम् उन्नत विद्याभ्यासम् कुर्वन्नस्मि। सैकालजि सोसियालजि तथ आङ्ग्ल भाषा पठन्नस्मि। मह्यम् सैकालजि एवम् आङ्ग्ल भाषा रोचते। विद्याभ्यासेन सह, सम्स्कृते, कर्नाटक संगीतायाम् अपि आसक्तिः अस्ति। सुरसरस्वति सभायाः परीक्षासु तृतीय परीक्ष पर्यन्तम् अहम् कृतवती। विदुषी श्रीमति विद्या सुब्रह्मण्यम् येतया, संगीताभ्यासम् कुर्वन्नस्मि। जूनियर् परीक्षायम् ८३% एन उत्तीर्णोहम् अभवत्। सीनियर् कक्षायाम् ९८% एन उत्तिर्णोहम् अभवत्। अधुना विद्वत् कक्षायम् अभ्यासम् कुर्वन्नस्मि। भवत्र संगीत कार्यक्रामपि दत्तम् अस्मि। पुस्तक पठनम् एवम् चलनचित्र वीक्षणम् अपि मया रोचते। मम प्रिय मृगः कुक्कुरः अस्ति। मम प्रिय वर्णः रक्तः एवम् कृष्णः स्तः। मम प्रिय क्रीडा टेन्निस् अस्ति। मम अत्यन्त प्रिय अभिनेत टांम क्रूज् महोदयः। गायकेषु बलमुरळीकृष्णः महोदयः मह्यम् अत्यन्त प्रियतम। भोजनेषु गोधूम पिश्ठः मम अत्यन्त प्रियम्। आम्रफलम् मह्यम् बहु प्रियम्। आपन्याम् व्यापारःन रोचते मह्यम्। केवल कालहरणम् इति मम अभिप्रायम्। मम अत्यन्त प्रियम् श्लोकम् सम्स्कृते सअस्ति। तत अस्ति : ॥नाहम् वसामि वैकुण्ठे, न योगि हृदये रवौ।
मद् भक्ताः यत्र गायन्ति, तत्र तिष्ठामि नारद॥
धन्यवादाः!