गुप्तलिपिः
गुप्तकाले अनया एव लिप्या जनाः संस्कृतम् अलिखन् । अस्याः लिप्याः एव सिद्धलिपिः शारदालिपिः नगरीलिपिः च उदभवन्।
उद्भवनम्
सम्पादयतुएषा लिपिः अशोकब्राह्मीलिप्याः एव उदभवत्। एतत् ब्राह्मिकलिपिकुलस्य सदस्यः अस्ति। गुप्ताक्षराः सुन्दराः अभवन्।
अभिलेखनानि
सम्पादयतुअनया लिप्या अनेके स्तूपाभिलेखानि सन्ति। तेषु प्रयागे हरिसेनेन कृतम् अभिलेखनं प्रमुखम् अस्ति। बहुसिकासु अपि गुप्त्तलिप्या अभिलेखनानि सन्ति।
अक्षराणि
सम्पादयतुअ | इ | उ | ए | ओ | ऋ |
आ | औ |
क | ख | ग | घ | ङ् |
च | छ | ज | झ | ञ |
ट | ठ | ड | ढ | ण |
त | थ | द | ध | न |
प | फ | ब | भ | म |
य | र | ल | व | |
श | ष | स | ह |