"नाट्यशास्त्रम् (ग्रन्थः)" इत्यस्य संस्करणे भेदः

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नाटकों के संबंध में शास्त्रीय जानकारी को नाट्य शास्त्र कहते हैं। इस जानकारी का सबसे पुराना ग्रंथ भी नाट्य-शास्त्र के नाम से जाना जाता है। इसके रचयिता भरत मुनि थे। भरत मुनि का काल ४०० ईपू के निकट माना जाता है।
संगीत, नाटक, और अभिनय के संपूर्ण ग्रंथ के रूप में भारतमुनि के नाट्य शास्त्र का आज भी बहुत सम्मान है। उनका मानना है कि नाट्य शास्त्र में केवल नाट्य रचना के नियमों का आकलन नहीं होता बल्कि अभिनेता रंगमंच और प्रेक्षक इन तीनों तत्वों की पूर्ति के साधनों का विवेचन होता है। 37 अध्यायों में भरतमुनि ने रंगमंच अभिनेता अभिनय नृत्यगीतवाद्य, दर्शक, दशरूपक और रस निष्पत्ति से संबंधित सभी तथ्यों का विवेचन किया है। भरत के नाट्य शास्त्र के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि नाटक की सफलता केवल लेखक की प्रतिभा पर आधारित नहीं होती बल्कि विभिन्न कलाओं और कलाकारों के सम्यक के सहयोग से ही होती है।
==प्रस्तावना==
[[File:Classical indian dance 8.jpg|thumb|भरतनाट्यम्]]
भारतदेशस्य संस्कृतवाङ्मयस्य च कीर्तिसौधस्य आधारस्तम्भा इव चत्वारः भरतनामानः कीर्तिशेषाः श्रूयन्ते । तेषु प्रथमः दुष्यन्तपुत्रः भरतः । द्वितीयः बाहुबलिसोदरः भरतः । तृतीयः श्रीरामस्य अनुजः भरतः । चतुर्थस्तु [[नाट्यशास्त्रम्]] इत्येत्द्ग्रन्थस्य कर्ता [[भरतमुनिः]] । एवं चतुर्णाम् एतेषां भरतानां जन्मभूमिः, कर्मभूमिः च योऽयं देशः वर्तते [[भारतम्]] इति यथार्थाभिधानम् भजते । तथैव भरतमुनिना प्रणीतं भारतीयं [[नाट्यशास्त्रम्]] भवति । [[नाट्यवेदः]] इति नाट्यशास्त्रस्य पुरातनं नाम बभूव, यथा-
:वेदोपवेदैः संबद्धो नाट्यवेदो महात्मना ।
"https://sa.wikipedia.org/wiki/नाट्यशास्त्रम्_(ग्रन्थः)" इत्यस्माद् प्रतिप्राप्तम्